Uncle ki beti ko hostel me choda

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मेरे और सुगंधा के बीच प्रथम संभोग के बाद (पूर्व कथा) अगले दिन उसकी परीक्षा थी, जिसे दिलवाकर मैं शाम की ट्रेन से उसे गाँव वापस छोड़ आया। दो महीने बाद उसे महिला छात्रावास में कमरा मिल गया और उसकी पढ़ाई-लिखाई शुरू हो गई। तभी सिविल सेवा की प्रारंभिक परीक्षाओं का परिणाम घोषित हुआ और मैं उनमें सफल रहा। अब मुझे मुख्य परीक्षाओं की तैयारी करनी थी। मुख्य परीक्षाओं के लिए मेरे विषय थे हिंदी और राजनीति विज्ञान। मेरे मकान मालिक को पता चला कि मेरा प्रारंभिक परीक्षाओं में चयन हो गया है तो उन्होंने मुझे बधाई दी और मुख्य परीक्षाओं के बारे में मेरी योजना जानने के बाद मुझसे बोले- तुम्हारी हिंदी तो काफी अच्छी होगी, तभी तुमने मुख्य परीक्षाओं के लिए हिंदी का चुनाव किया है। तुम मेरी बेटी नेहा को हिंदी पढ़ा दिया करो। तुम तो जानते ही हो कि वो हिंदी माध्यम की छात्रा है। गणित, विज्ञान तो कोचिंग में पढ़ लेती है हिंदी पढ़ाने वाला कोई नहीं मिलता। हिंदी में उसके नंबर भी बहुत कम आते हैं।

मैंने कहा- अंकल, मेरे पास खुद ही पढ़ने के लिए इतनी सामग्री है कि समय कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता। मैं कैसे उसे समय दे सकूँगा।

अंकल बोले- बेटा, रोज मत पढ़ाना, कभी सप्ताह में एक दिन रख लो। वैसे भी हिंदी ऐसा विषय है कि सप्ताह में एक दिन भी किसी से मार्गदर्शन मिल जाए तो विद्यार्थी स्वयं ही तैयारी कर लेता है।

मैं बोला- ठीक है अंकल, रविवार को मैं उसे एक घण्टा पढ़ा दिया करूँगा।

अंकल खुश हो गए, उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया कि मेरा मुख्य परीक्षाओं में चयन हो जाए।

रविवार को मैं “मुक्तिबोध” की लंबी कविता “अँधेरे में” पढ़कर समझने की कोशिश कर रहा था जब दरवाजे पर दस्तक हुई।

‘यहाँ कौन आ गया?’ सोचते हुए मैंने दरवाजा खोला। सामने स्कर्ट और टॉप पहने नेहा खड़ी थी। इसके पहले मेरी दो तीन बार उससे औपचारिक बातचीत भर हुई थी।

वो बोली- भैय्या, मैं हिंदी पढ़ने के लिए आई हूँ। पापा ने कहा है रविवार को मैं आपसे हिंदी पढ़ लिया करूँ।

मैं बोला- आओ बैठो, किताब लाई हो क्या?

उसने अपने हाथ में थमी किताब मुझे थमा दी। किताब पर उसने अखबार चढ़ाया हुआ था, किताब थी काव्यांजलि, जो उन दिनों उत्तर प्रदेश में विज्ञान संकाय के छात्रों को सामान्य हिंदी विषय में पढ़ाई जाने वाली किताबों में से एक थी।

परीक्षा में इसका एक पूरा पैंतीस अंकों का पर्चा होता था। मैंने उसे हिंदी में ज्यादा नंबर पाने के कुछ तरीके बताए, सुनकर वो खुश हो गई। फिर मैंने कबीर के कुछ दोहों की व्याख्या की और उसके बाद मैं बोला- आज के लिए इतना ही काफी है। बाकी अगले सप्ताह।

वो खुश होकर चली गई। अगले रविवार को सुबह-सुबह मैंने पास के पीसीओ पर जाकर सुगंधा के छात्रावास में फोन लगाया। वो फोन पर आई तो मैंने पूछा- कैसी चल रही है तुम्हारी पढ़ाई आजकल?

वो बोली- अच्छी चल रही है। आप बताइए आपकी प्रारंभिक परीक्षा का परिणाम घोषित होने वाला था?

मैं बोला- हो गया। अब मुख्य परीक्षाओं की तैयारी कर रहा हूँ।

वो वोली- इतनी अच्छी खुशखबरी बिना मिठाई के दे रहे हैं?

मैं बोला- अब फोन से मिठाई खाएगी क्या?

वो बोली- मिठाई लेकर जल्दी से आइए।

मैंने बाजार से तीन चार तरह की मिठाइयाँ मिलाकर आधा किलो का पैकेट बनवाया और लेकर उसके छात्रावास की तरफ चल पड़ा।

छात्रावास के गेट पर पहुँचकर मैंने अंदर संदेशा भिजवाया तो वो बाहर निकली। उसने एकदम कसी जींस और टॉप पहना हुआ था। पिछले दो तीन महीनों में उसके उरोज और नितंबों में काफी बदलाव आया था और वो भरे भरे लग रहे थे। क्या संभोग भी शरीर के हार्मोनल बदलावों की गति बढ़ा सकता है, मैंने सोचा।

जीव विज्ञान में मेरा सामान्य ज्ञान कमजोर पड़ रहा था।

तभी उसकी आवाज मेरे कानों में पड़ी- लाइए, पैकेट दीजिए, मैं अपनी सहेलियों को देकर आती हूँ।

कहकर उसने पैकेट मेरे हाथों से छीन लिया और छात्रावास के भीतर चली गई।

वो बाहर आई तो पैकेट उसके हाथों में नहीं था, वो बोली- ये तो था मेरी सहेलियों का हिस्सा, अब बताइए मैं क्या खाऊँ।

मैं बोला- चलो, चलकर और खरीद लेते हैं।

साथ साथ चलते हुए हम मिठाई की दुकान पर आए। मिठाई लेने के बाद मैं उससे बोला- यहाँ तो बहुत भीड़ है। चलो मेरे कमरे पर चलकर आराम से खाते हैं।

इतना कहकर मैंने उसके चेहरे की ओर देखा। उसके चेहरे से मुस्कान धीरे धीरे गायब हो गई और वो भाव उभर आए जो समर्पण करने को तैयार लड़कियों की आँखों में होते हैं और जिन्हें मैं पहले भी उसकी आँखों में देख चुका था।
उसके बाद पूरे रास्ते हममें कोई बात नहीं हुई। मैं आगे आगे और वो मेरे पीछे पीछे चलती रही। मुड़कर देखने की मुझमें हिम्मत नहीं थी। वैसे ही चुपचाप हम कमरे पर पहुँचे।

उसके अंदर आने के बाद मैंने दरवाजा बंद किया, वो फोल्डिंग बेड पर बैठ गई। पिछले संभोग के बाद से मैंने दूसरे फोल्डिंग बेड को हटाया नहीं था। मैंने डिब्बा खोलकर उसे मिठाई दी और रसोई से एक गिलास पानी लाकर दिया। उसने थोड़ी सी मिठाई खाई और थोड़ा सा पानी पिया फिर गिलास बेड के नीचे रख दिया। मैंने उसके पास आकर उसकी आँखों में झाँका, उसकी साँसें तेज हो गई थीं और टॉप में कैद उसके वक्ष तेजी से ऊपर नीचे हो रहे थे।

मैंने उसके कंधों पर अपने दोनों हाथ रखे। उसने अपने हाथ मेरी कमर पर रख दिए। मैंने उसको खुद से सटा लिया। उसका चेहरा मेरी छाती से सट गया। मैंने उसे कंधों से पकड़कर उठाया और अपनी बाहों में भींच लिया। उसने भी मुझे कसकर पकड़ लिया। मेरे हाथ धीरे धीरे उसकी पीठ पर फिरने लगे।

“सुगंधा दो-तीन महीनों में ही कितनी गदरा गई है !” मैंने सोचा।

मैंने अपना हाथ पीछे से सुगंधा की जींस में डालने की कोशिश की। जींस बहुत तंग थी। केवल हाथ का उँगलियों वाला हिस्सा ही अंदर घुस सका। मैंने हाथ बाहर निकाला और जींस के ऊपर से ही उसके नितंबों को दबाना शुरू किया। यह मेरे लिए एक नया अनुभव था। हाथों को महसूस तो जींस का मोटा कपड़ा ही हो रहा था लेकिन एक अलग ही आनन्द आ रहा था। शायद यह इसलिए था कि अब तक जींस पहनी हुई लड़कियों के नितंब देखदेखकर मन में उनको मसलने की ख्वाहिश इतनी तेज हो चुकी थी कि जींस का कपड़ा नंगे नितम्बों को सहलाने से ज्यादा मजा दे रहा था। यह कामदेव जो न करवाये सो थोड़ा।

थोड़ी देर में मेरा मन उसके नितम्बों से भर गया तो मैंने उसे बेड पर लिटा दिया। उसकी आँखें बंद थी।

मैंने उससे कहा- आँखें खोल लो सुगंधा, अब मुझसे कैसी शर्म?

उसने अपनी आँखें खोलीं, मैं उसके ऊपर लेट गया। मेरा उभरा हुआ पजामा उसके जाँघों के बीच उभरे जींस से सट गया। मैं उसके होंठों को अपने होंठों के बीच लेकर चूसने लगा और मिठाई की मिठास मेरे मुँह में घुलने लगी। फिर मैंने उसकी टीशर्ट ऊपर उठानी शुरू की।

उसने सफेद रंग की ब्रा पहनी हुई थी। उसने मेरा मलतब समझकर अपने हाथ ऊपर उठाए और मैंने उसकी टीशर्ट खींचकर बाहर निकाल दी। मैंने ताबड़तोड़ उसके शरीर के नग्न हिस्सों को चूमना शुरू किया। उसके मुँह से सिसकारियाँ निकलकर कमरे में गूँजने लगीं। शायद वो भी इन दो महीनों में उतना ही तड़पी थी जितना मैं तड़पा था।

मैंने उसके ब्रा का बायाँ कप हटा दिया और उसका चुचूक मुँह में भर कर चूसने लगा। वो मचलने लगी पर मैं अब कहाँ रुकने वाला था। मैंने उसका चुचूक अपने दाँतों के बीच पकड़ा और धीरे धीरे काटने लगा। बीच बीच में मैं थोड़ा जोर से भी काट लेता था और वो चिहुँक उठती थी। मगर यहाँ ऊपर कौन सुनने वाला था। यही हाल मैंने उसके दूसरे चुचूक का भी किया।

मेरा लिंग पूरी तरह तन चुका था, अब अगर मैंने इसे आजाद न किया तो मेरा अंडरवियर ही फट जाएगा, मैंने सोचा।

मैं उठा और फटाफट अपने कपड़े उतार कर फेंके, कौन सा कपड़ा कहाँ गिरा, इसकी सुध लेने की फुर्सत मुझे कहाँ थी। तभी मुझे याद आया कि मस्तराम की कहानियों के नायक तो नायिका को अपना लिंग भी चुसवाते हैं।

सुगंधा ने फिर अपनी आँखें बंद कर ली थीं। शायद वो मुझे नग्न देखकर शर्मा गई थी। यह कहानी आप देसी मासला लैव.कॉम पर पढ़ रहे हैं।

मैं अपने पैर उसके शरीर के दोनों तरफ करके उसके वक्ष के ऊपर इस तरह बैठ गया कि मेरा भार उसके शरीर पर न पड़े। मैं अपना लिंग उसके मुँह के पास ले आया, मैंने कहा- सुगंधा आँखें खोलो।

उसने आँखें खोली और अपने मुँह के ठीक सामने मेरे भीमकाय लिंग को देखकर डर के मारे फिर से बंद कर लीं।

मैंने कहा- सुगंधा, इसे चूसो। जैसे मैं तुम्हारी योनि चूसता हूँ वैसे ही।

उसने आँखें खोलीं और बोली- नहीं, मुझे घिन आती है।

मैंने कहा- घिन तो मुझे भी आती है तुम्हारी योनि चूसते हुए, मगर तुमको मजा देने के लिए चूसता हूँ न। उसी तरह तुम भी मुझे मजा देने के लिए चूसो।

कहकर मैं अपना लिंग उसके मुँह के पास ले आया। उसने कुछ नहीं किया तो मैंने खुद ही अपना लिंग उसके होंठों से सटा दिया। फिर भी उसने कुछ नहीं किया तो मैंने अपना लिंग उसके होंठों पर रगड़ना शुरू किया।

अचानक उसने मेरा लिंग अपने हाथों में पकड़ लिया और बोली- आपका लिंग तो बहुत बड़ा है।

मैं चौंक गया, मैंने पूछा, “तुम्हें कैसे पता? तुमने तो आजतक सिर्फ़ मेरा ही लिंग देखा है।

उसने फिर अपनी आँखें बंद कर लीं और शर्म से उसके गाल लाल हो गए।

मैंने कहा- बता सुगंधा की बच्ची, तुझे कैसे पता कि मेरा लिंग बहुत बड़ा है?
उसने मेरा लिंग अपने हाथों में पकड़ लिया और बोली- आपका लिंग तो बहुत बड़ा है।

मैं चौंक गया, मैंने पूछा, “तुम्हें कैसे पता? तुमने तो आजतक सिर्फ़ मेरा ही लिंग देखा है।

उसने फिर अपनी आँखें बंद कर लीं और शर्म से उसके गाल लाल हो गए।

मैंने कहा- बता सुगंधा की बच्ची, तुझे कैसे पता कि मेरा लिंग बहुत बड़ा है?

वो बोली- छात्रावास में कंप्यूटर विज्ञान की एक लड़की के पास कंप्यूटर है। छात्रावास में हमारी सीनियर्स ने रैगिंग के दौरान हमें उस कंप्यूटर पर ब्लू फिल्म दिखाई थी। उसके बाद मैंने कई बार अपनी सहेलियों के साथ उस कंप्यूटर पर ब्लू फ़िल्म देखी है लेकिन जितना बड़ा आपका लिंग है इतना बड़ा उन फिल्मों में किसी का भी लिंग नहीं था।

मैंने कहा- मैं इतना बड़ा हो गया हूँ और आज तक मैंने सिर्फ़ मस्तराम की कहानियाँ ही पढ़ी थीं और तूने फिल्में भी देख लीं। विज्ञान संकाय की लड़कियाँ छात्रावास में रहकर वाकई बर्बाद हो जाती हैं। लेकिन उन फ़िल्मों में तो लिंग चूसते हुए भी दिखाते होंगे। तो तू मेरा लिंग क्यों नहीं चूस रही है?

वो बोली- मुझे वो दृश्य बहुत गंदे लगते हैं। जब ऐसे दृश्य फ़िल्मों में आते हैं तो मैं अपना मुँह दूसरी तरफ घुमा लेती हूँ।

‘यह लड़की नहीं चूसने वाली, लेकिन एक दिन मैंने अपना ये भीमकाय लिंग इसके गले तक न उतारा तो मेरा भी नाम नहीं।’

यह सोच फिर मैं नीचे आया और उसके जींस का एकमात्र बटन खोलकर जिप नीचे सरकाई। उसने काले रंग की पैंटी पहनी हुई थी। जींस इतनी मस्त और पैंटी गाँव की लड़कियों वाली।


बहरहाल मैंने उसका जींस पकड़कर नीचे खींचना शुरू किया। जींस बेहद टाइट थी। नीचे खींचने में मुझे पसीना आ गया। लड़कियाँ इतनी टाइट जींस पहनती ही क्यूँ हैं?

मैंने सुगंधा से कहा- जल्दी से अपनी जींस उतार।

वो उठी और उसने एक ही झटके में अपनी जींस उतार कर रख दी। इसे कोई जादू आता है क्या? जिस काम में मुझे इतनी दिक्कत हो रही थी इसने एक झटके में कर दिया।

अब बात मेरे बर्दाश्त के बाहर थी। मैंने उसकी पैंटी पकड़कर खींची तो वो चर्र की आवाज़ के साथ फट गई। गाँव की लड़कियों की पतली सी पैंटी।

उसने कहा- मेरी पैंटी फाड़ दी आपने, अब मैं क्या पहनूँगी?

मैं बोला- चुप रह, मैं दस खरीद दूँगा। चार रूपए की पैंटी के लिए चार करोड़ के आनन्द में विघ्न डाल रही है।

सुगंधा समझ गई कि अब मै खुद पर से नियंत्रण खो चुका हूँ। वो और कुछ बोलती इससे पहले ही मैंने उसकी योनि को मुँह में भरकर चूसना और बीच बीच में दाँतों से हल्के से काटना शुरू कर दिया। उसकी कमर मचलने लगी।

मैं पागलों की तरह उसकी योनि चूस रहा था। आज मुझको योनि की गंध दुनिया के बेहतरीन इत्र से भी अच्छी लग रही थी और योनि का हल्का नमकीन, हल्का कसैला और हल्का खट्टा स्वाद दुनिया के सबसे स्वादिष्ट पकवान से भी लजीज लग रहा था। मैंने अपनी जीभ उसकी योनि के अंदर जितना घुस सकती थी घुसेड़ दी। उसने अपनी कमर ऊपर उठा दी ताकि मैं अपनी जीभ और अंदर घुसेड़ सकूँ। मैं अपनी जीभ उसकी योनि में तेजी से अंदर बाहर करने लगा। उसकी कमर हिलने लगी। मैंने जीभ बाहर निकाली और फिर से उसकी योनि मुँह में लेकर चूसने लगा।उसकी योनि में स्थित मटर के फूल के बीच में एक मटर के दाने जैसी छोटी संरचना थी। जैसे ही मेरी जीभ उससे टकराती उसके मुँह से सिसकारी निकलने लगती। मैं समझ गया कि इस मटर के दाने को चुसवाने में इसे ज्यादा मजा आ रहा है। मैंने अपना सारा प्रयास उस मटर के दाने को अपनी जीभ से चाटने में लगा दिया। जितना तेजी से मुझसे हो सकता था मैं उस दाने को चूस रहा था। सुगंधा के मुँह से निकली सिसकारियाँ कमरे में गूँज रही थीं।

थोड़ी देर बाद उसने कसकर मेरे बाल अपनी हथेलियों में पकड़ लिए, धीरे धीरे उसके हाथों ने मेरे बालों को खींचना शुरू किया। मैं तेजी से चूस रहा था और उसकी हथेलियों का खिंचाव मेरे बालों पर बढ़ता जा रहा था।

अचानक उसकी कमर बुरी तरह उछलने लगी और वो मुझे दूर धकेलने लगी लेकिन मैंने चूसना नहीं छोड़ा।

कुछ क्षणों बाद उसने कहा- बस, भैया बस ! अब बस करो, प्लीज। और वो निढाल पड़ गई।

सुगंधा को चरम आनंद की प्राप्ति हो चुकी थी, अब मेरी बारी थी। मैं बिना देरी किए उसके ऊपर आ गया। उसकी योनि चूसने से काफी गीली हो चुकी थी। मैंने लिंग मुंड को तीन-चार बार उसकी योनि से रगड़कर गीला किया और बेताबी में एक जोर का धक्का दिया। मेरा लिंगमुंड सुगंधा की योनि में प्रविष्ट हुआ और उसके मुँह से घुटी घुटी सी चीख निकली। उसने मुझे अपने ऊपर से धकेलने की कोशिश की लेकिन मुझे धकेलना उसके बस की बात कहाँ थी। वो दो तीन बार तड़पी फिर ढीली पड़ गई।

मैं उसके होंठों को अपने होंठों में लेकर चूसने लगा। कुछ क्षणों बाद मैंने फिर एक धक्का मारा तो उसने अपने होंठ मेरे होंठों से छुड़ा लिए और बोली- आज फिर दर्द हो रहा है।

मैंने पूछा- पिछली बार से कम या पिछली बार से ज्यादा?

वो बोली- नहीं, पिछली बार तो बहुत ज्यादा दर्द हुआ था।

मैंने कहा- तो सब्र कर, जैसे पिछली बार किया था थोड़ी देर में दर्द गायब हो जाएगा।

इस बार मैंने आहिस्ता आहिस्ता अपने लिंग पर दबाव बढ़ाया। लिंगमुंड उसकी गहराइयों में उतरने लगा। उसे थोड़ी दिक्कत तो हो रही थी लेकिन आनन्द पाने के लिए कष्ट तो सहना ही पड़ता है। लिंग पूरा उसकी गहराई में उतर जाने के बाद मैंने आहिस्ता आहिस्ता अपनी कमर हिलानी शुरू की। वो मेरा साथ नहीं दे रही थी पर इस वक्त मुझे परवाह कहाँ थी। मैं धीरे धीरे अपनी गति बढ़ाने लगा। उसकी जाँघों से मेरी जाँघें टकराने लगीं और कमरे में धप धप की आवाज गूँजने लगी। उसके होंठ मेरे होंठों में थे और उसके मांसल उरोज मेरी छाती से दबकर चिपक गए थे।

मैं और जोर से धक्के मारने लगा। थोड़ी देर बाद वो भी मेरे धक्कों के साथ साथ कमर हिलाने लगी। मैंने उसकी दोनों टाँगें अपने नितंबों के ऊपर चढ़ा लीं और अपने हाथ उसके नितंबों के नीचे ले गया। अब मैं और गहराई में पहुँच रहा था। अब वो अपनी जीभ से मेरी जीभ चूस रही थी। संभोग का नशा उसके भी सर चढ़कर बोल रहा था।

एक बार फिर हम दोनों अपने होश खो बैठे थे।

मेरे मुँह से फिर गंदे शब्द निकल रहे थे- सुगंधा, जानेमन, कैसा लग रहा है मेरी जान? मजा आ रहा है रानी? देख तेरी छोटी सी चूत का मेरे मोटे लंड ने क्या हाल कर दिया है। मैंने तेरी फाड़ डाली है सुगंधा। अब मैं जब चाहूँगा, जहाँ चाहूँगा, जैसे चाहूँगा तुझे चोदूँगा मेरी जान। ओ सुगंधा मेरी जानेमन। ये ले मेरी जान। ले ले मेरा मोटा लौंडा। आज मैं अपने बीज से तेरी सारी आग बुझा दूँगा मेरी जान।

सुगंधा के मुँह से भी गंदे गंदे शब्द निकल रहे थे। फच फच की आवाज के साथ गंदे शब्द मिलकर अजीब सा संगीत रच रहे थे।

अचानक सुगंधा मुझसे कसकर लिपट गई। उसका बदन काँपने लगा। मैं समझ गया कि यह दोबारा चरम आनंद प्राप्त कर रही है। मैं अपनी पूरी ताकत से धक्के मारने लगा। मैं अपना सारा वीर्य उसकी योनि में गिराना चाहता था।

अचानक वो बोली- आज अंदर मत गिराइएगा।

मैंने पूछा- क्यों?

वो बोली- पिछली बार सुरक्षित समय था। इस बार अंदर गिराएँगें तो मैं गर्भवती हो जाऊँगी। मेरा मासिक धर्म हुए दस दिन बीत चुके हैं।

मेरे दिमाग को एक झटका सा लगा। यह जीव विज्ञान की छात्रा है निश्चित ही सही कह रही होगी। इतना बड़ा रिस्क लेना ठीक नहीं है। जीव विज्ञान में मेरा सामान्य ज्ञान वाकई कमजोर था।

मैंने अपना लिंग बाहर निकाल लिया। उसकी टाँगों को पूरी तरह फैला दिया और उनके बीच में बैठकर हस्तमैथुन करने लगा। उसकी योनि के बाल न ज्यादा छोटे थे न ज्यादा बड़े। मैं एक हाथ से उसकी योनि सहलाने लगा और एक हाथ से हस्तमैथुन करने लगा। दो मिनट बाद मेरे लिंग से वीर्य की धार निकलर उसके पेट और स्तनों पर गिरने लगी। कुछ बूँदें उसके चेहरे पर भी गिरीं। उसने अजीब सा मुँह बनाया।

मैंने उसकी फटी पैंटी उठाई और उसके शरीर से अपना वीर्य पोंछकर साफ किया। फिर मैंने उसे कसकर अपनी बाहों में जकड़ लिया।

मेरा मुँह खिड़की की तरफ था, अचानक मैंने देखा कि पर्दे के एक किनारे किसी की छाया पड़ रही है। पर्दे और खिड़की की दीवार के बीच थोड़ी सी जगह थी और बाहर जो कोई भी था वो यकीनन यह सब देख रहा था।

मेरे तो होश उड़ गए, अब क्या होगा? कौन हो सकता है बाहर?

आज रविवार है और हो सकता है कि नेहा मुझसे हिंदी पढ़ने आई हो !

हे कामदेव, वासना मिटाने के चक्कर में इतनी महत्वपूर्ण बात मेरे ध्यान से कैसे उतर गई।

मैं फटाफट उठा और जल्दी से कुर्ता और पैजामा डालकर बाहर आया। नेहा जल्दी जल्दी सीढ़ियाँ उतर रही थी। संभवतः उसने भी मुझे अपनी ओर देखते देख लिया होगा।

हे कामदेव, अगर इसने किसी से कुछ कह दिया तो मैं और सुगंधा कहीं के नहीं रहेंगे।

मेरे मुँह से अपने आप निकल गया- नेहा, सुनो !

वो खड़ी हो गई, उसने मुड़कर देखा, उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया था।

मैंने कहा- आओ, तुम्हें अपनी चचेरी बहन से मिलवाता हूँ।

वो वहीं खड़ी रही। मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा, मैं सभी देवताओं से मनाने लगा कि आज बचा लो, आज के बाद ऐसा काम कभी नहीं करूँगा।

फिर उसने ऊपर वाली सीढ़ी पर कदम रखा। मैंने चैन की साँस ली, कामदेव एवं अन्य देवों को धन्यवाद दिया।

वो ऊपर आई। हम कमरे में आए। सुगंधा बाथरूम में थी। उसकी पैंटी एक कोने में पड़ी हुई थी। मेरे अंडरवीयर और बनियान बेड के नीचे पड़े हुए थे।

सुगंधा बाहर निकली। उसने कपड़े पहन लिए थे अपने बाल जूड़े की शक्ल में बाँध लिए थे।

मैंने दोनों का परिचय करवाया। उसके बाद मैंने नेहा को मिठाई दी।

फिर नेहा के हाथ से किताब लेकर मैंने उसे “कामायनी” का वो अंश जो उसकी पुस्तक में थे दिखाया और बोला- इसे अच्छी तरह पढ़ लो। अगर इसकी भाषा तुम्हें कठिन लगे तो चिंचित मत होना। तुम इसे दो तीन बार गा गाकर पढ़ लो। मैं जरा सुगंधा को इसके छात्रावास छोड़ कर आता हूँ। मैं वापस आकर तुम्हें इस महाकाव्य के बारे में विस्तार से बताऊँगा।”

सुगंधा को साथ लेकर मैं निकल पड़ा।

रास्ते में उसने मुझसे पूछा- आप को एकदम सही समय पर कैसे ख्याल आया कि यह ऊपर आने वाली है?

अब मैं सुगंधा को कैसे बताता कि नेहा ने सबकुछ देख लिया है। सुगंधा बेकार में डर जाती। मैंने बाजार से उसके लिए नई पैंटीज लीं और उसे उसके छात्रावास छोड़ कर वापस लौटा।

रास्ते में मुझे वो प्रसिद्ध कहावत याद आई। इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपते। अब क्या होगा? क्या नेहा सबको बता देगी कि मैं और सुगंधा संभोग कर रहे थे?

कहीं नेहा मुझे ब्लैकमेल तो नहीं करने लगेगी? हे कामदेव, इस बार बचा ले।