यह मेरी पहली कहानी है, मेरा नाम रणजीत है, मैं 30 साल का हूँ और सीतापुर उ.प्रदेश से हूँ। यह पिछले साल की बात है।
मेरा एक दोस्त है जिनका नाम डाक्टर राम वर्मा है। एक दिन मैं राम के अस्पताल में बैठा हुआ था। तभी उनके यहाँ एक लड़की आई और राम को गुडमॉर्निंग कहते हुए अन्दर चली गई।
मैंने डा॰ राम से पूछा- यह कौन है?
तो राम ने बताया- इसका नाम चँचल है और यह मेरे यहाँ नर्स का काम करती है। यहाँ से 5 किमी॰ दूर गाँव से आती है।
चँचल जो कि बहुत ही खूबसूरत लड़की थी और उसे देखकर ही मेरा मन उसे चोदने को करने लगा था। उसके बाद मैं जब भी मौका पाता सीधे डा॰ राम के यहाँ बैठा रहता और चँचल के गुलाबी गुलाबी गाल और उसकी उभरी हुई चूचियों को निहारा करता। पता नही क्यों जब वह अपने ऊँचे ऊँचे चूतड़ मटका कर चलती तो मेरा लण्ड फनफना कर छलागें मारनें लगता और मुझे अपने लण्ड को अपने हाथों से दाबकर बिठाना पड़ता।
चँचल मुझे डा॰ राम का दोस्त समझकर मुझसे घुल मिल गई थी।
एक दिन मैं जब अस्पताल पहुँचा तो देखा कि चँचल अकेली बैठी हुई कोई मैगजीन पढ़ रही थी। उसने मुझे देखते ही झट से मैगजीन को उठाकर मेज के नीचे डाल दिया और उसका चेहरा एकदम लाल हो गया।
मैंने कहा- चँचल इतना परेशान क्यों हो? डाक्टर साहब कहाँ गये हैं?
चँचल ने सकपकाते हुए कहा- आज वे किसी काम से बाहर गयें हैं !
मैंने कहा- जरा एक गिलास पानी तो पिला दो।
वह उठकर पानी लेने चली गई और मैंने मेज के नीचे से वह मैगजीन निकाली और उसको देखते ही मेरे लण्ड में गर्मी पैदा हो गई। वह मैगजीन नहीं आग का गोला थी, उसमें नँगी तस्वीरें, चोदते-चुदवाते हुए तस्वीरें थी।
तब तक चँचल पानी लेकर वापस आ गई और मेरे हाथ में उसको किताब को देखकर शरमा कर अन्दर भाग गई। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉंम पर पढ़ रहे हैं।
मैं भी उसके पीछे-पीछे कमरे मे घुस गया और पीछे से जाकर उसकी दोनोँ चूचियों को दबाने लगा। वह कुछ नही बोल रही थी।
फिर मैँने कहा- चँचल नाराज तो नहीं हो?
तो उसने धीरे से न में गर्दन हिला दी, मैं समझ गया कि यह भी मेरे जितनी ही गर्म है।
मैं उसका मुँह अपनी ओर करके उसके होठों को अपने मुँह मे रखकर चूसने लगा और एक से उसके दूध और दूसरा हाथ उसकी सलवार के अन्दर डाल कर उसकी बुर में एक उंगली डाल कर हिलाने लगा।
चँचल भी अब गर्म हो रही थी। उसने भी मेरी चेन खोलकर मेरे लण्ड को सहलाना चालू कर दिया। मेरे लण्ड का सुपारा फूलकर हथौड़ा बन गया था। मैंने चँचल को वहीं फर्श पर लिटा दिया, उसकी सलवार को नीचे उतार दिया, उसकी कमीज को ऊपर खिसका दिया और उसके एक दूध को मुँह से चूसने लगा।
चँचल आह के साथ मुझसे कस कर चिपक गई। मुझे लगा कि वह झर रही है।
अब मेरा लण्ड पूरी तरह से चँचल की बुर में फड़फड़ाने के लिए बेचैन हो रहा था। तब तक चँचल फिर गर्म हो चुकी थी, उसने खुद ही कहा- अब और न तड़फाओ। बस मेरी में अपना घुसा कर मेरी सारी गर्मी निकाल दो।
मैंने अपने लण्ड को चँचल की चूत में रखकर एक झटका दिया। चँचल की एक सीत्कार के साथ मेरा पूरा का पूरा लण्ड उसकी चूत में समा गया।
अब तो चँचल हचके मार मार कर मेरे लण्ड को अपनी चूत से खुद चोद रही थी और मैं भी खूब जोर जोर से चँचल की चूत से अपने लौड़े को चुदवा रहा था !
अब मुझे लगने लगा कि मैं झर जाऊँगा, मैंने अपनी गति और तेज कर दी और चँचल के साथ ही झर गया।