मेरा एक ई-मित्र है तरुण ! बस ऐसे ही जान पहचान हो गई थी। वो मेरी कहानियों का बड़ा प्रशंसक था। उसे किसी लड़की को पटाने के टोटके पता करने थे। एक दिन जब मैं अपने मेल्स चेक कर रहा था तो उस से चाट पर बात हुई थी। फिर तो बातों ये सिलसला चल ही पड़ा। यह कहानी उसके साथ हुई बातों पर आधारित है। लीजिये उसकी जबानी सुनिए :
दोस्तों मेरा नाम तरुण है। 20 साल का हूँ। कॉलेज में पढता हूँ। पिछले साल गर्मियों की छुट्टियों में मैं अपने नानिहाल अमृतसर घूमने गया हुआ था। मेरे मामा का छोटा सा परिवार है। मेरे मामाजी रुस्तम सेठ 45 साल के हैं और मामी सविता 42 के अलावा उनकी एक बेटी है कनिका 18 साल की। मस्त क़यामत बन गई है अब तो अच्छे-अच्छो का पानी निकल जाता है उसे देख कर। वो भी अब मोहल्ले के लौंडे लपाडों को देख कर नैन मट्टका करने लगी है।
एक बात खास तौर पर बताना चाहूँगा कि मेरे नानाजी का परिवार लाहोर से अमृतसर 1947 में आया था और यहाँ आकर बस गया। पहले तो सब्जी की छोटी सी दूकान ही थी पर अब तो काम कर लिए हैं। खालसा कॉलेज के सामने एक जनरल स्टोर है जिसमें पब्लिक टेलीफ़ोन, कंप्यूटर और नेट आदि की सुविधा भी है। साथ में जूस बार और फलों की दूकान भी है। अपना दो मंजिला मकान है और घर में सब आराम है। किसी चीज की कोई कमी नहीं है। आदमी को और क्या चाहिए। रोटी कपड़ा और मकान के अलावा तो बस सेक्स की जरुरत रह जाती है।
मैं बचपन से ही बहुत शर्मीला रहा हूँ मुझे अभी तक सेक्स का ज्यादा अनुभव नहीं था। बस एक बार बचपन में मेरे चाचा ने मेरी गांड मारी थी। जब से जवान हुआ था अपने लंड को हाथ में लिए ही घूम रहा था। कभी कभार नेट पर सेक्सी कहानियां पढ़ लेता था और ब्लू फिल्म भी देख लेता था। सच पूछो तो मैं किसी लड़की या औरत को चोदने के लिए मरा ही जा रहा था। मामाजी और मामी को कई बार रात में चुदाई करते देखा था। वाह… 42 साल की उम्र में भी मेरी मामी सविता एक दम जवान पट्ठी ही लगती है। लयबद्ध तरीके से हिलते मोटे मोटे नितम्ब और गोल गोल स्तन तो देखने वालों पर बिजलियाँ ही गिरा देते हैं। ज्यादातर वो सलवार और कुरता ही पहनती है पर कभी कभार जब काली साड़ी और कसा हुआ ब्लाउज पहनती है तो उसकी लचकती कमर और गहरी नाभि देखकर तो कई मनचले सीटी बजाने लगते हैं। लेकिन दो दो चूतों के होते हुए भी मैं अब तक प्यासा ही था।
जून का महीना था। सभी लोग छत पर सोया करते थे। रात के कोई दो बजे होंगे। मेरी अचानक आँख खुली तो मैंने देखा मामा और मामी दोनों ही नहीं हैं। कनिका बगल में लेटी हुई है। मैं नीचे पेशाब करने चला गया। पेशाब करने के बाद जब मैं वापस आने लगा तो मैंने देखा मामा और मामी के कमरे की लाईट जल रही है। मैं पहले तो कुछ समझा नहीं पर हाईई ओह … या … उईई … की हलकी हलकी आवाज ने मुझे खिड़की से झांकने को मजबूर कर दिया। खिड़की का पर्दा थोड़ा सा हटा हुआ था।
अन्दर का दृश्य देख कर तो मैं जड़ ही हो गया। मामा और मामी दोनों नंगे बेड पर अपनी रात रंगीन कर रहे थे। मामा नीचे लेटे थे और मामी उनके ऊपर बैठी थी। मामा का लंड मामी की चूत में घुसा हुआ था और वो मामा के सीने पर हाथ रख कर धीरे धीरे धक्के लगा रही थी और आह… उन्ह…। या … की आवाजें निकाल रही थी। उसके मोटे मोटे नितम्ब तो ऊपर नीचे होते ऐसे लग रहे थे जैसे कोई फ़ुटबाल को किक मार रहा हो। उनकी चूत पर उगी काली काली झांटों का झुरमुट तो किसी मधुमक्खी के छत्ते जैसा था।
वो दोनों ही चुदाई में मग्न थे। कोई 8-10 मिनट तक तो इसी तरह चुदाई चली होगी। पता नहीं कब से लगे थे। फिर मामी की रफ्तार तेज होती चली गई और एक जोर की सीत्कार करते हुए वो ढीली पड़ गई और मामा पर ही पसर गई। मामा ने उसे कस कर बाहों में जकड़ लिया और जोर से मामी के होंठ चूम लिए।
“सविता डार्लिंग ! एक बात बोलूं ?”
“क्या ? ”
“तुम्हारी चूत अब बहुत ढीली हो गई है बिलकुल मजा नहीं आता ?”
“तुम गांड भी तो मार लेते हो वो तो अभी भी टाइट है ना ?”
“ओह तुम नहीं समझी ?”
“बताओ ना ?”
“वो तुम्हारी बहन बबिता की चूत और गांड दोनों ही बड़ी मस्त थी ? और तुम्हारी भाभी जया तो तुम्हारी ही उम्र की है पर क्या टाइट चूत है साली की ? मज़ा ही आ जाता है चोद कर”
“तो ये कहो ना कि मुझ से जी भर गया है तुम्हारा ?”
“अरे नहीं सविता रानी ऐसी बात नहीं है दरअसल मैं सोच रहा था कि तुम्हारे छोटे वाले भाई की बीवी बड़ी मस्त है। उसे चोदने को जी करता है ?”
“पर उसकी तो अभी नई नई शादी हुई है वो भला कैसे तैयार होगी ? ”
“तुम चाहो तो सब हो सकता है ?”
“वो कैसे ?”
“तुम अपने बड़े भाई से तो पता नहीं कितनी बार चुदवा चुकी हो अब छोटे से भी चुदवा लो और मैं भी उस क़यामत को एक बार चोद कर निहाल हो जाऊं !”
“बात तो तुम ठीक कह रहे हो, पर अविनाश नहीं मानेगा ?”
“क्यों ?”
“उसे मेरी इस चुदी चुदाई भोसड़ी में भला क्या मज़ा आएगा ?”
“ओह तुम भी एक नंबर की फुद्दू हो ! उसे कनिका का लालच दे दो ना ?”
“कनिका … ? अरे नहीं. वो अभी बच्ची है !”
“अरे बच्ची कहाँ है ! पूरे अट्ठारह साल की तो हो गई है ? तुम्हें अपनी याद नहीं है क्या ? तुम तो केवल सोलह साल की ही थी जब हमारी शादी हुई थी और मैंने तो सुहागरात में ही तुम्हारी गांड भी मार ली थी !”
“हाँ ये तो सच है पर ….”
“पर क्या ?”
“मुझे भी तो जवान लंड चाहिए ना ? तुम तो बस नई नई चूतों के पीछे पड़े रहते हो मेरा तो जरा भी ख़याल नहीं है तुम्हें ?”
“अरे तुमने भी तो अपने जीजा और भाई से चुदवाया था ना और गांड भी तो मरवाई थी ना ?”
“पर वो नए कहाँ थे मुझे भी नया और ताजा लंड चाहिए बस कह दिया ?”
“ओह… तुम तरुण को क्यों नहीं तैयार कर लेती ? तुम उसके मज़े लो और मैं कनिका की सील तोड़ने का मजा ले लूँगा !”
“पर वो मेरे सगे भाई की औलाद हैं क्या यह ठीक रहेगा ?”
“क्यों इसमें क्या बुराई है ?”
“पर वो… नहीं ..। मुझे ऐसा करना अच्छा नहीं लगता !”
“अच्छा चलो एक बात बताओ जिस माली ने पेड़ लगाया है क्या उसे उस पेड़ के फल खाने का हक नहीं होना चाहिए ? या जिस किसान ने इतने प्यार से फसल तैयार की है उसे उस फसल के अनाज को खाने का हक नहीं मिलना चाहिए ? अब अगर मैं अपनी इस बेटी को चोदना चाहता हूँ तो इसमें क्या गलत है ? ”
“ओह तुम भी एक नंबर के ठरकी हो। अच्छा ठीक है बाद में सोचेंगे ?”
और फिर मामी ने मामा का मुरझाया लंड अपने मुंह में भर लिया और चूसने लगी। मैं उनकी बातें सुनकर इतना उत्तेजित हो गया था कि मुट्ठ मारने के अलावा मेरे पास अब कोई और रास्ता नहीं बचा था। मैं अपना 7 इंच का लंड हाथ में लिए बाथ रूम की ओर बढ़ गया। फिर मुझे ख़याल आया कनिका ऊपर अकेली है। कनिका की ओर ध्यान जाते ही मेरा लंड तो जैसे छलांगें ही लगाने लगा। मैं दौड़ कर छत पर चला आया।
कनिका बेसुध हुई सोई थी। उसने पीले रंग की स्कर्ट पहन रखी थी और अपनी एक टांग मोड़े करवट लिए सोई थी। स्कर्ट थोड़ी सी ऊपर उठी थी। उसकी पतली सी पेंटी में फ़सी उसकी चूत का चीरा तो साफ़ नजर आ रहा था। पेंटी उसकी चूत की दरार में घुसी हुई थी और चूत के छेद वाली जगह गीली हुई थी। उसकी गोरी गोरी मोटी जांघें देख कर तो मेरा जी करने लगा कि अभी उसकी कुलबुलाती चूत में अपना लंड डाल ही दूँ।
मैं उसके पास बैठ गया। और उसकी जाँघों पर हाथ फेरने लगा। वाह.. क्या मस्त मुलायम संग-ए-मरमर सी नाज़ुक जांघें थी। मैंने धीरे से पेंटी के ऊपर से ही उसकी चूत पर अंगुली फिराई। वो तो पहले से ही गीली थी। आह … मेरी अंगुली भी भीग सी गई। मैंने उस अंगुली को पहले अपनी नाक से सूंघा। वाह क्या मादक महक थी। कच्चे नारियल जैसी जवान चूत के रस की मादक महक तो मुझे अन्दर तक मस्त कर गई। मैंने अंगुली को अपने मुंह में ले लिया। कुछ खट्टा और नमकीन सा लिजलिजा सा वो रस तो बड़ा ही मजेदार था।
मैं अपने आप को कैसे रोक पाता। मैंने एक चुम्बन उसकी जाँघों पर ले ही लिया। वो थोडा सा कुनमुनाई पर जगी नहीं। अब मैंने उसके उरोज देखे। वह क्या गोल गोल अमरुद थे। मैंने कई बार उसे नहाते हुए नंगा देखा था। पहले तो इनका आकार नींबू जितना ही था पर अब तो संतरे नहीं तो अमरुद तो जरूर बन गए हैं। गोरे गोरे गाल चाँद की रोशनी में चमक रहे थे। मैंने एक चुम्बन उन पर भी ले लिया। मेरे होंठों का स्पर्श पाते ही कनिका जग गई और अपनी आँखों को मलते हुए उठ बैठी।
“क्या कर रहे हो भाई?” उसने उनिन्दी आँखों से मुझे घूरा।
“वो. वो… मैं तो प्यार कर रहा था ?”
“पर ऐसे कोई रात को प्यार करता है क्या ? ”
“प्यार तो रात को ही किया जाता है ?” मैंने हिम्मत करके कह ही दिया।
उसके समझ में पता नहीं आया या नहीं। फिर मैंने कहा,”कनिका एक मजेदार खेल देखोगी ?”
“क्या ?” उसने हैरानी से मेरी और देखा।
“आओ मेरे साथ !” मैंने उसका बाजू पकड़ा और सीढ़ियों से नीचे ले आया और हम बिना कोई आवाज किये उसी खिड़की के पास आ गए। अन्दर का दृश्य देख कर तो कनिका की आँखें फटी की फटी ही रह गई। अगर मैंने जल्दी से उसका मुंह अपनी हथेली से नहीं ढक दिया होता तो उसकी चीख ही निकल जाती। मैंने उसे इशारे से चुप रहने को कहा। वो हैरान हुई अन्दर देखने लगी।